Meaning of Gunchaa

मंगलवार, दिसंबर 01, 2009

सपने ऐसे जो टूट गए...



देखे जो इन आखों से मैंने वो सपने कैसे टूट गए,
मेरे होकर भी मुझसे वो बेगानों जैसे रूठ गए..
आशाओं के 'पर' लेकर मुझे गगन में उड़ना था
उम्मीदों की डोरी से आकाश नया ही बुनना था,
फिर किसने ये मोती माला के एक-एक करके बाँट दिए ?
जैसे उड़ती हुई चिड़िया के 'पर' किसी ने काट दिए...


अक्सर एक ख़्वाब रातों को मुझको भी सताता है,
देखना चाहता हूँ जब उसको, वह धुंधला सा पड़ जाता है..
मैं एक कदम ओर उसकी बढाता हूँ, वो दो कदम पीछे हट जाता है,
और जाते-जाते फिर मुझको एक ज़ख़्म नया दे जाता है...
ज़ख़्म ऐसा...
जिसको भरने में फिर एक ज़माना बीत जाता है...


पर भरते हुए ज़ख़्म कहीं एक टीस नई छोड़ जाते हैं,
जैसे खुश्क बहारों के मौसम में अपनी याद दिलाते हैं,
ऐसे ही सपने अक्सर मुझको रातों को आतें हैं...


सुना था हमने पर पता नहीं था, की हर सपना पूरा नहीं होता,
पर इनके टूट जाने से दर्द घनेरा है होता...


इसलिए...


इन सपनो को आज कहीं मैं फिर दफना कर आया हूँ,
आज फिर अपने अरमानो की कहीं चिता जला कर आया हूँ...


- मनप्रीत

रविवार, नवंबर 15, 2009

मौला

ऐ खुदा ये दुआ है तुझसे...


की ज़िन्दगी के सफ़र जब मैं थक जाऊं, कदम आगे बढाते-बढाते पीछे हट जाऊं,
जब कोई हमनफस मेरे साथ न हो, और सर पर किसी रहनुमां का हाथ न हो,
ऐ मौला मदद कर, मदद कर, मदद कर...


तेरे ही दर पर किस्मतें सवर जाती हैं, बिन मांगे सब अर्ज़ियां कबूल हो जाती हैं,
पर न जाने मैं तुझे क्यों हूँ भूल जाता,  क्यों मुश्किल के वक़्त ही तू मुझे है याद आता,
क्यों गुनाह करने से पहले तेरा खौफ ज़हन में नहीं आता,
जब भी मेरा इमान डगमगाए, ऐ मौला मदद कर, मदद कर, मदद कर...


ज़िन्दगी भर तू मेरे जुर्मों को अपने पहलू में छुपता रहा...
हर मोड़ पे मैं तुझे भुलाता रहा,  और तू साए की तरह मेरे साथ आता रहा,
तेरे ही चीज़ को तुझे ही सौंप कर मैं एहसान जताता रहा, पर फिर भी तू मुस्कुराता रहा
जब मेरे काम बिगड़े तुने मुझे सहारा दिया, मेरी डूबती हुई कश्ती को तुने ही किनारा दिया
लेकिन उसे भी मैं अपनी हिम्मत बताता रहा, और मन ही मन अपनी पीठ थप-थपाता रहा...


तेरी बनाई इस दुनिया में या खुदा... में जिंदा तो हूँ !!!
पर अपनी ही निगाहों आज बहुत शर्मिंदा हूँ...
बस इतनी सी अर्जी है मेरी कुबूल कर, की कभी फुर्सत से मेरे भी गुनाहों का हिसाब कर,
और अगर हो सके तो हर शख्स को मुआफ कर...
ऐ खुदा बस इतनी सी अर्जी है कुबूल  कर, कुबूल कर, कुबूल कर...


- मनप्रीत

बुधवार, अक्तूबर 14, 2009

कुछ कमी मुझ में ही होगी...

जो आज वो मुझसे रूठ गया,
कुछ कमी मुझ में ही होगी...
दिल ने चाहा उसे रोकना, पर रोक न सका,
कुछ कमी मुझ में ही होगी...


जहाँ झुकना था वहां झुक न सका,
जहाँ रुकना था वहां रुक न सका,
मंजिल तो करीब थी पर पहुँच न सका,
शायद इसलिए जो बनना था वो बन न सका,
कुछ कमी मुझ में ही होगी...


आँखें तो हज़ार थी पर, किसी का नूर बन न सका,
दिल तो हज़ार थे पर किसी में घर कर न सका,
सफ़र में दोस्त तो लाखों मिले, पर कोई दिलबर मिल न सका,


कुछ कमी मुझ में ही होगी...
कुछ कमी मुझ में ही होगी...


जिसका इंतज़ार था मुझे उसने मुझे देखा नहीं,
जिसके लिए रुका था मैं वो मेरे लिए रुका नहीं,
प्यार के खंजर से उसने मेरा कत्ल किया,
पर मैंने कहा दर्द अभी हुआ नहीं...


क्योंकि...


कुछ कमी मुझ में ही होगी...
कुछ कमी मुझ में ही होगी...

दिल तो रोता है मेरा भी,
पर कोई आंसू टपकता नहीं,
इस दुनिया के अंधियारे में
अब कोई हाथ मेरा पकड़ता नहीं

ज़रूर...

कुछ कमी मुझ में ही होगी...
कुछ कमी मुझ में ही होगी...


- मनप्रीत

गुरुवार, अक्तूबर 08, 2009

इंतजार... Wait that never ends...



कमरे के एक कोने में मद्धम सी लौ जलती है,
न जाने किस उम्मीद में रोशन इस अन्जुमन को करती है,




जैसे- जैसे रात का नशा बढ़ता है, हल्का-हल्का सा सुरूर चढ़ता है,
चारों और सन्नाटा है, दूर तक कोई शख्स नज़र नहीं आता है


सन्नाटा पहले इतना खामोश न था, जितना आज सुनाई पढता है,
धीमे-धीमे घड़ी के कांटे यूँ चलते हैं, जैसे न चाह के भी अपना फ़र्ज़ पूरा करते हैं


जैसे-जैसे रात का शबाब चढ़ता है, लौ का नाच चलता है,
और कुछ देर बाद वह भी फढ़ - फढ़ाने लगती है, 
जल-जल के उसकी साँसें भी उखड़ने लगती हैं


पर इस अन्जुमन में आज भी कोई नहीं आता है,
लौ का तमाशा धीरे-धीरे आज फिर ख़त्म हो जाता है,
आज फिर एक दीये की लौ का कत्ल हो जाता है...


- मनप्रीत