होश में आकर बेहोश हो जाऊं इतना भी अब होश नहीं
मयखानों की गलियों में मुझसा कोई मदहोश नहीं
तन्हाईयों से दोस्ती मेरी, गमों से अब कोई बैर नहीं,
अपने ही घर में अब यारों मुझसा कोई गैर नहीं
कल तक थे जो मेरे अपने, आज उनसा कोई बेगाना नहीं,
मेरे ही अक्स ने यारों, आज मुझको पहचाना नहीं
सब कुछ तो पा लिया लेकिन,
थी आरज़ू जिसकी वो मिला नहीं
पर फिर भी उपरवाले तुझसे मुझको कोई गिला नहीं...
- मनप्रीत