कुछ ना कह कर भी ये
बहुत कुछ कह जाता था
मेरे अंदर भी कहीं, बच्चा एक समाता था
जो हर पर हँसता था, गाता था
परेशानियों से दूर तक, ना कोई इसका नाता था
पर उम्र के साथ...
ना जाने इस मन को क्या हो गया है
जितना चंचल था ये पहले
अब उतना ही कठोर हो गया है
अस्तित्व मेरा अब तितर-बितर हो गया है
लगता है वो बच्चा कहीं खो गया है...
- मनप्रीत