कि कोई इसे फिर ढूंड न पाए
हाथों की लकीरों से भी इनके निशान मिट जाएं
तेज़ हवाओं के झोकों में
वो सफ़े कहीं उड़ा देना
हर राज़ मेरे तुम कहीं छुपा देना
जो हो तुम खफा मुझसे,
तो मुझे कभी जता देना
अपने इन एहसासों को
मेरी धड़कन तक पहुंचा देना
जो फिर भी समझ न पाऊँ तुमको
'नासमझ' मुझे कहला देना
हर गुनाह को फूलों की तरह सजा रखा है मैंने"मेरी धड़कन तक पहुंचा देना
जो फिर भी समझ न पाऊँ तुमको
'नासमझ' मुझे कहला देना
पर ये राज़ तुम कहीं छुपा देना
"चेहरा एक नकाब के पीछे छुपा रखा है मैंने
जब बहती नदी की धारा में
ये अस्थियाँ मेरी बहा देना
तब तुम चाहे सबको
तब तुम चाहे सबको
ये राज़ भले बतला देना...
- मनप्रीत