Meaning of Gunchaa

शुक्रवार, दिसंबर 27, 2024

उम्र चालीस की


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उम्र ये चालीस की बड़ी अजीब होती है
थोड़ी सी मीठी, थोड़ी नमकीन होती है

सच पूछो तो ये उम्र का ही तकाज़ा है
बीस जैसी शक्ति बची नहीं और साठ का हुआ नहीं अंदाज़ा है

दौड़ते हैं तो सांस अब जल्दी फूल जाती है
और घुटनों से कुछ "कट-कट" की आवाज़ आती है

कमर में लचक अब पहले जैसी नहीं रह गई
पता भी नहीं चला जवानी कैसे बह गई

अब तो, काले बालों में से सफ़ेदी झांकने लगी है
मेरी ये "काया" भी मुझे अब कम आंकने लगी है

यादाश्त भी अब टिम-टिमाने लगी है
माथे पे भी झुर्रियां नज़र आने लगी हैं

अलार्म से पहले नींद मेरी खुल जाती है
और अक्सर बैठे-बैठे सोफे पर, झपकी आ जाती है

राजमा, दाल मखनी, अब रास नहीं आती है
और घीया, टिंडे, तोरी, एक आंख नहीं भाती है

उम्र ये बहुत ज़ालिम है, ज़रा भी तरस खाती नहीं
पहले तो दूर की थीं, अब पास की चीज़ें भी साफ नज़र आती नहीं

कुछ सुधार दी बीवी ने, कुछ सुधर रही है
उम्र ये भी लगभग ठीक-ठाक सी गुज़र रही है


- मनप्रीत

मंगलवार, अगस्त 20, 2024

बच्चे हल्के, बस्ते भारी...


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कहने को तो दोस्त हैं, पर लगती अब बोझ हैं
हर अक्षर को *सोज़ बना डाला है
किताबों को स्कूल ने बोझ बन डाला है

कमी नहीं है इम्तिहान की, कमी है केवल सामान्य ज्ञान की
पर वह भी नहीं ये दे पाते हैं
इतने भारी बस्ते लेके नजाने बच्चे कैसे स्कूल जाते हैं

छुट्टियों में भी काम है, न दो पल का आराम है
प्रतिस्पर्धा की अग्नि की भेंट इनका जीवन कर डाला है
स्कूल और ट्यूशन ने बच्चों का बचपन जला डाला है

शिक्षा नीति नई हो, चाहे हो पुरानी, बदस्तूर जारी है आज भी वही कहानी
आंखों पे पट्टी बांध कर, नई शिक्षा प्रणाली को लिख डाला है
आ के देखो धरातल पर, तुमने तो केवल कांधे पर बोझ बड़ा डाला है

करना था पाठ्यक्रम 'कम' लेकिन तुमने तो बढ़ा दिया है
इतिहास पढूं या पढूं भुगोल, हर विषय को उलझा दिया है
और ऊपर से ये गणित जिसमे, जाने कैसे 'एक' में से 'दो' घटा दिया है

पर स्तिथि कुछ ऐसी है, कि बच्चे हल्के हैं, बस्ते भारी हैं
इन नन्हे- नन्हे कंधों पे डाली कितनी ज़िम्मेदारी है
माना कि ज्ञान की कोई कीमत नहीं, वह बहुत ज़रूरी है
पर बेमतलब का दबाव डालना, ये कैसी मजबूरी है?
 

*सोज़ - दर्द


- मनप्रीत

सोमवार, मई 20, 2024

मुश्किल तो ये है...

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तो जनाब, मुश्किल तो ये है...

हर बात मैं पत्नी से कह पता नहीं
और जो कह जाता हूं गलती से
मतलब उसका उल्टा निकाल लेती है वो जल्दी से

मुश्किल तो ये है...

*अव्वल तो, उसे मैं छेड़ता नहीं जान के
और अगर कभी हो जाती है मुझसे मिस्टेक
छिड़ जाता है जिंदगी में मेरी, पानीपत की जंग का री-टेक

मुश्किल तो ये है...

कि मैं भी कभी-कभी बोल देता हूं, ज़ुबान अपनी खोल देता हूं
पर सच को मेरे पहना दिया जाता है झूठ का नकाब
और आगे-पीछे कई सालों का मेरे, हो जाता है हिसाब

मुश्किल तो ये है...

कि छोटी-छोटी बातों का भी *फ़साना बना दिया जाता है
*नुक़्ते से नुक़्ते को जोड़कर
चक्रव्यू त्यार किया जाता है

बस फिर क्या ?

बिना वजह बहस में मुझे और खींच लिया जाता है
Point Blank पे निशाना रख के
मेरा शिकार किया जाता है

मानो हर और से उड़ता तीर मेरी और ही आता है
उन्हीं तीरों के वार से खुदको रोज़ बचाता हूं
सफ़ेद रुमाल हाथों में लेकर शांति का पाठ पढ़ाता हूं

पर मैं जानता हूं...
अंत में केवल सच की विजय होती है
पति तो हार जाता है और पत्नी *'अजय' होती है

* अव्वल - first
फ़साना - story
नुक़्ता - dot, बिंदू
अजय- invincible


- मनप्रीत