Meaning of Gunchaa

रविवार, जुलाई 06, 2025

कभी मुझे भी याद रखना...

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poem👇



चाहे होठों पे नहीं नाम मेरा पर दिल में अपने आबाद रखना
कभी मुझे भी याद रखना

यादों को मेरी भुला देना, खतों को मिट्टी में दफना देना
पर खुशबू उस मिट्टी की मन में कहीं छुपाए रखना
कभी मुझे भी याद रखना

कभी अगर अतीत की यादों में जाना चाहो
तो Google Photos में दबी रील को मेरी एक बार तकना
इसी बहाने कभी मुझे भी याद रखना

नंबर मेरा Delete कर देना, Step आखरी तुम ये Complete कर देना
पर FB के दोस्तों की लिस्ट में 'मित्र' मुझे बनाए रखना
कभी मुझे भी याद रखना

दिल से दिल तक जुड़ी तार में चाहे करंट न हो
पर सप्लाई बहाल होने की उम्मीद तुम जगाए रखना
कभी मुझे भी याद रखना


- मनप्रीत

गुरुवार, जून 12, 2025

मेरा प्यारा पायजामा...



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बड़ी शिद्दत से...
मैने एक पायजामा सिलवाया
उसपे धारियों वाला डिज़ाइन बनवाया
पर लोगों की बुरी नज़र उसे खा गई
चार दिन में ही बिचारे की सिलाइयाँ बाहर आ गई
"आसन" से वह कुछ इस तरह फट गया
जैसे भारत- पाकिस्तान दो हिस्सों में बट गया

कपड़ा उसका सूती था
लकीरें उसपे चमकदार थी
मनचाही कीमत देने को उसकी, पूरी दिल्ली तैयार थी
वो मेरी आखों का तारा था
4 कुर्तों को मेरे, उसका ही सहारा था

अब उसकी क्या मैं तारीफ करूं...

बिल्कुल भी नख़रे नहीं दिखाता था
Free size उसका हर किसी को पूरा आ जाता था
चाहे लंबाई में थोड़ा नाटा था
पर जो देख ले एक झलक, पहने बिना रह नहीं पाता था
वह दूर से नीला, और पास से पीला था
न कहीं से घिसा हुआ, न कहीं से ढ़ीला था
उसके रेशमी नाड़े को देख सब हैरान थे
कहाँ से लाए ऐसा पायजामा, ये सोच के मुहल्ले वाले परेशान थे

चाचा जी, ताया जी और "सो किलो" के फूफ़ा जी तक ने, उसे आज़माया था
पर हर किसी को उसमे, एक अपनापन नज़र आया था
लेकिन सबकी ख़्वाहिशें पूरी करते-करते "दम" उसका निकल गया
छोटी सी एक चीख के साथ, वो कई हिस्सों में बिखर गया
पर जाते-जाते भी वो अपना फर्ज़ अदा कर गया
अपने छोटे भाई "बरमुडे" (Shorts) को मेरे हवाले कर गया
पहन उसे अब, मैं अपना काम चलाता हूँ
खुली हवा का आनंद अब मैं, बरमुडे में पाता हूँ
मेरी अलमारी का हर कपड़ा आज बहुत उदास है
पर उसके जैसा एक और पायजामा अभी भी मेरे पास है

चाहिए हो आपको तो मुझे Comment में बता देना
फिर बाद में मत कहना, कि मेरे लिए भी एक सिल्वा देना


- मनप्रीत

मंगलवार, मई 06, 2025

लकीरें

 


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लकीरें कुछ इशारा कर जाती हैं

माथे पे आएं
तो चिंता बन के उभर आती हैं

हाथों में आएं
तो तकदीरें बन जाती हैं

चहरे पे आई लकीरें
तजुर्बे की गहराई बताती हैं

देशों में आए
तो सरहद कहलाती हैं

घर में आ जाए
तो बंटवारा कर जाती हैं

लकीर के इस पार या उस पार होने से
जीत हार तय हो जाती है

दिलों के दरमियां आई लकीरें
जल्दी से नहीं मिट पाती हैं

लकीरें कुछ इशारा कर जाती हैं


- मनप्रीत

बुधवार, अप्रैल 16, 2025

प्यार की फटी किताब...



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अलमारी के एक कोने में दबी...
प्यार की फटी किताब को आज जब हाथों में उठाया
कुछ बिखरे हुए सफों में, कुछ बिखरी हुई यादों को दबा पाया
हर लफ्ज़ को जब सांसों की गर्माहट से सहलाया
पन्ने - पन्ने को उसके मैंने, प्यार की गोंद से चिपका पाया

*जिलत उसकी फट चुकी थी
हर क़िरदार की पहचान मिट चुकी थी
प्यार उसके हर अक्षर में समाया था
उसमें बने दिल को आज भी धड़कता पाया था

ग़ौर से पढ़ा जब मैंने उसको, हर कहानी कुछ अधूरी थी
महक प्यार की फिर भी उसके हर पन्ने में पूरी थी
कुछ पन्नों में ख्वाब थे, कुछ में छुपे *आज़ाब थे
हर किरदार के अभिनय में रंग बेहिसाब थे

आगे के पन्नों से जब, धूल की चादर को हटाया
एक मुड़े हुए पन्ने में, मैंने अपना ज़िक्र पाया
कुछ सूखे हुए फूलों के साथ, नाम मेरा भी लिखा था
ये मत पूछो अब तुम मुझसे, कि किसने वो *पैगाम लिखा था
उस मुड़े हुए पन्ने को मैंने किताब से हटा दिया
वजूद उस कहानी का मैंने धुआं बना के उड़ा दिया

ये अधूरी कहानी भी, उसी किताब का हिस्सा है
हर लफ्ज़ में लिखा हुआ, एक प्यार का किस्सा है
आ के बैठना पास मेरे, तुम्हे हर किस्सा सुनाऊंगा
पूरी किताब का सार तुम्हें मैं ढाई आख़र में समझाउंगा


*जिलत - Outer cover of the book
*आज़ाब - Sufferings
* पैगाम - message
*अल्फाज़, लफ्ज़ - Word


- मनप्रीत

शुक्रवार, जनवरी 03, 2025

नमक




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कभी आंसू बनकर पीता रहा, कभी ज़ुबां का स्वाद बनाता रहा
नमक की डली मैं ज़िंदगी भर, चटकारे ले कर खाता रहा

कभी नमक ज़्यादा खाने से ज़ायका मेरा बिगड़ गया
तो कभी कम नमक वाले खाने को मैं, बेस्वाद ही निगल गया

फीकी पड़ी महोब्बत को मैं, नमक रगड़ कर चखता रहा
सारा शहर मुझे देख, बावला समझ कर हंसता रहा

जब किसी को हाल जो मैंने दिल का अपने सुना दिया
मुट्ठी भर नमक उसने ज़ख्मों पर, दवा कह कर लगा दिया

माथे से पसीना मेरे टप-टप कर टपकता रहा
इस नमक का कर्ज़ मैं सारी उम्र भरता रहा

पर बात इतनी सी समझ नहीं आई मुझे
की चुटकी भर डालो या चमच भर, नमक वो बला है
मात्रा जिसकी बराबर रखना भी एक कला है


- मनप्रीत