
कितना अच्छा होता, हर बात हम तुमसे कह पाते
*रंज-ओ-गम दिल के तुम्हे बता पाते
लहरें जो अंदर उठ रही हैं
साहिल तक पहुंचा पाते
अच्छा होता, हर बात हम तुमसे कह पाते
हर लफ्ज़ ज़ुबां तक ला पाते
तेरे सवालों का जवाब दे पाते
कभी खुद से भी हम लड़ पाते
मन अपने को पढ़ पाते
अच्छा होता, हर बात हम तुमसे कह पाते
हर ज़ख्म को अपने दिखा पाते
मुखोटा चहरे से हटा पाते
दर्द दिए हैं तूने कितने
ये तुझको हम जता पाते
अच्छा होता, हर बात हम तुमसे कह पाते
बहराल,
होंठ सिले हुए हैं मेरे
ज़ुबान मेरी खामोश पड़ी है
सीने से उठ रहा है धुआं, जो नहीं किसी को दिख रहा है
दर्द अब नमी बनके पलकों तले, आंखों से मेरी रिस रहा है
यही समझ रहा हूँ बस अब
कि मैं मिट रहा हूँ, या ये (दर्द) मिट रहा है...
*रंज-ओ-गम = Grief and Sorrow
- मनप्रीत
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