कल गली के नुक्कड़ पे एक शख्स कुछ उदास सा खड़ा था
पूछा उससे जब नाम मैने, तो वो रो पड़ा थाकंधे पे रखा हाथ मैने उसके, और उसे चुप कराया
तब जा के कहीं उसने सारा मसला सुनाया और अपना नाम 'ख़ुदा' बताया
कहने लगा...
मंदिर और मस्जिद, दोनो घर के मेरे दरवाज़े हैं
मंत्र और आज़ान मेरे दिल की दो आवाज़ें हैं
चाहे कोई पढ़े चालीसा, चाहे पढ़े कुरान
फिर दोनों में भेद कैसा, जब दोनों मेरी हैं पहचान
क्या फर्क पड़ता है...
की कोई करे सजदा, या कोई हाथ जोड़कर करे याद
बस प्यार से पुकारो मुझे, मैं सुनता हूं हर फरियाद
कोई राम बोल के मुझे बुलाता, कोई मौला कहके दे आवाज़
फिर नजाने ये झगड़ा कैसा, जब दोनों हैं मेरे दिल के पास
न कोई जाति, न कोई मज़हब, कोई नहीं है मुझे गवारा
जो थामे हाथ इंसानियत का, वो ही है केवल मुझे प्यारा
पर देख के इनको लड़ता, मन मेरा लाचार है
जैसे मेरे घर के बीच खींच गई दीवार है
ये जलते शहर, जलते घर...
क्यों हर दिल में छुपी हुई एक ज्वाला है
जिसने इनकी आत्मा को जला डाला है
धर्म, जाती से ऊपर हूँ मैं, इसमे नहीं है कोई सवाल
फिर क्यों लड़ पड़ते हैं ये दोनों, जब दोनों का ही खून है लाल
जब हर कण में, हर क्षण में, हर वेश में मैं समाता हूं
इबादत करते वक़्त कभी राम तो कभी अल्लाह बन के याद आता हूं
अगर इतनी सी बात इन्हें कोई नहीं समझाएगा
तो पुराण और कुरान के दरमियां फासला कैसे मिट पाएगा
बिखरा हुआ वजूद अपना आज फिर से संजो रहा हूं
इस लिये कोने पे खड़ा हो के 'रो' रहा हूं
- मनप्रीत
11 टिप्पणियां:
Bahut badiya keep on writing
Unda pradarshan 👏👏
🙏🏻❤️
Shandaar....keep it up👍
Lajawab...keep on writing 😊
Outstanding
शानदार कविता
बहुत ही शानदार कविता
Tusi great ho
Tusi great ho
Tusi great ho
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