Meaning of Gunchaa

मंगलवार, अगस्त 20, 2024

बच्चे हल्के, बस्ते भारी...


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कहने को तो दोस्त हैं, पर लगती अब बोझ हैं
हर अक्षर को *सोज़ बना डाला है
किताबों को स्कूल ने बोझ बन डाला है

कमी नहीं है इम्तिहान की, कमी है केवल सामान्य ज्ञान की
पर वह भी नहीं ये दे पाते हैं
इतने भारी बस्ते लेके नजाने बच्चे कैसे स्कूल जाते हैं

छुट्टियों में भी काम है, न दो पल का आराम है
प्रतिस्पर्धा की अग्नि की भेंट इनका जीवन कर डाला है
स्कूल और ट्यूशन ने बच्चों का बचपन जला डाला है

शिक्षा नीति नई हो, चाहे हो पुरानी, बदस्तूर जारी है आज भी वही कहानी
आंखों पे पट्टी बांध कर, नई शिक्षा प्रणाली को लिख डाला है
आ के देखो धरातल पर, तुमने तो केवल कांधे पर बोझ बड़ा डाला है

करना था पाठ्यक्रम 'कम' लेकिन तुमने तो बढ़ा दिया है
इतिहास पढूं या पढूं भुगोल, हर विषय को उलझा दिया है
और ऊपर से ये गणित जिसमे, जाने कैसे 'एक' में से 'दो' घटा दिया है

पर स्तिथि कुछ ऐसी है, कि बच्चे हल्के हैं, बस्ते भारी हैं
इन नन्हे- नन्हे कंधों पे डाली कितनी ज़िम्मेदारी है
माना कि ज्ञान की कोई कीमत नहीं, वह बहुत ज़रूरी है
पर बेमतलब का दबाव डालना, ये कैसी मजबूरी है?
 

*सोज़ - दर्द


- मनप्रीत

3 टिप्‍पणियां:

बेनामी ने कहा…

बहुत खूब शब्दों में पिरोया है आपने नन्हें कंधों की भावनाओ को।

Gurpreet Singh ने कहा…

अति सुन्दर👌👌

बेनामी ने कहा…

Very nice