Meaning of Gunchaa

बुधवार, सितंबर 14, 2022

दर्द 'हिंदी' का..













कभी मिटाया गया है
कभी दबाया गया है
अंग्रेज़ी बोलने की चाहत में
मुझे हर पल भुलाया गया है

बोलने में मुझे गर्व नहीं
शर्मिंदा महसूस करते हैं
भाषाओं के चयन में
मुझे दो नम्बर पर रखते हैं

पढ़ने चले हो A, B, C, D...
पर ज्ञान हिंदी का अधूरा है
सच बताओ क्या तुम्हें
क, ख, ग... आता पूरा है ?

अगली बार जब बोलो इंग्लिश
एक बार मुझे याद करना
अपने लोगों के बीच में
न गैरों सा बर्ताव करना

हिंदी भाषा के ज्ञान की
आज नहीं कोई कीमत है
इसलिए मेरे बचने की
आशा बहुत ही सीमित है

माना है हर भाषा प्यारी
पर मुझे नहीं भुलाओ तुम
जिस सम्मान की मैं हूँ हक़दार
वो फिर मुझे दिलाओ तुम

पर नहीं मोहताज परिचय की मैं
सबसे पुराना मेरा इतिहास है
हर कोई बोलेगा फिर हिंदी
मुझे पूर्ण विश्वास है

हिंदी दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं।


- मनप्रीत

रविवार, सितंबर 11, 2022

दादी-नानी की कहानी




उनके चेहरे पर तजुर्बे की झुर्रियां है
उनकी आंखों में प्रेम का एहसास है
उनकी मुस्कान में धैर्य का आभास है
उनकी बातों से जीने की सही राह मिलती है
वो हर वक़्त अक्स की तरह मेरे साथ है
इसीलिए दादी-नानी का प्यार कुछ खास हैं

उनके माथे पे संतुष्टि की लकीरें हैं
उसके साये तले सुखों की बरसात है
उनकी डांट में भी प्यार छलक आता है
ऐसा प्यार किसी-किसी को ही मिल पाता है
उनकी असीसों (Blessings) की बरकत में कुछ बात है
इसीलिए दादी-नानी का प्यार कुछ खास हैं

पर हर बच्चे को कभी-कभी दोनो का प्यार नहीं मिल पाता
कभी ज़मीन, तो कभी आसमान नहीं मिल पाता
खुशनसीब होते हैं वो, जिन्हें मिलती है दोनों आंचल की छांव
जिनके पड़ते हैं दादी-नानी की दहलीज पर पांव
दोनों के आंगन की मिट्टी में लाड-प्यार की सौगात है
इसीलिए दादी-नानी का प्यार कुछ खास हैं


- मनप्रीत

मंगलवार, जून 28, 2022

आंखों की गवाही, दिल को सज़ा...


दिल ये मेरा आजकल बहुत शोर करता है
खाली-फोकट में बोर करता है
दिमाग भी इससे बहुत परेशान है,
कहता है कि ये नौटंकी की दुकान है।

दिमाग कहता है, बातें ये मेरी अनसुनी कर देता है,
घर (दिल) की खिड़कियां भी बंद कर लेता है।
मैं जहां रोकता हूं, ये वहां ज़रूर जाता है,
फिर बेवजह माहौल बनाता है।
साला! एक दम confusion फैला रखी है,
और मेरी तो इसने दही बना रखी है।
और रुठना... वो तो जैसे इसकी आदत में *शुमार है,
ये ज़रूर किसी गलत फ़हमी का शिकार है।

आखों की भी आज मुझे शिकायत आई है,
इसके *बेहयाई के क़िस्सों की, उसने भी *फेहरिस्त सुनाई हैं।
वो कहती है, की पहले भी ये कई बार हमें फसा चुका है,
आंखों का काजल बहुतों का चुरा चुका है।
करता है गलती, और ऊपर से भड़कता है,
धड़कनों की आवाज़ तेज़ करके, ज़ोर-ज़ोर से धड़कता है।
नज़रें मिला के, ये तो मुकर जाता है,
और शर्म से हमें झुकना करना पड़ जाता है।

ज़ुबां ने भी दिल पे *तोहमतें लगाईं हैं,
इस से भी बुलवाता है झूठ, ऐसी बात मेरे सुनने में आई है,
इसीलिए कचहरी में आज इस मनचले की पेशी करवाई है।
आंखों की गवाही सुनकर, दिल को सज़ा सुनाई है,
इसकी बातों का बहिष्कार करने की "दफा" इसपे लगाई है।
हालांकि, दिल की बातें न सुनने की कसम तीनों ने खाई है,
पर रिश्वत दे के इन्हें खरीदने की, अदा मैने दिल को सिखाई है।



*शुमार - हिस्सा
बेहयाई - बेशर्मी
फेहरिस्त - लिस्ट
तोहमतें - इल्ज़ाम
दफा - section in a law


- मनप्रीत

गुरुवार, मई 05, 2022

मेरा भगवान, तेरा ख़ुदा


कल गली के नुक्कड़ पे एक शख्स कुछ उदास सा खड़ा था
पूछा उससे जब नाम मैने, तो वो रो पड़ा था
कंधे पे रखा हाथ मैने उसके, और उसे चुप कराया
तब जा के कहीं उसने सारा मसला सुनाया और अपना नाम 'ख़ुदा' बताया

कहने लगा...

मंदिर और मस्जिद, दोनो घर के मेरे दरवाज़े हैं
मंत्र और आज़ान मेरे दिल की दो आवाज़ें हैं
चाहे कोई पढ़े चालीसा, चाहे पढ़े कुरान
फिर दोनों में भेद कैसा, जब दोनों मेरी हैं पहचान

क्या फर्क पड़ता है...

की कोई करे सजदा, या कोई हाथ जोड़कर करे याद
बस प्यार से पुकारो मुझे, मैं सुनता हूं हर फरियाद
कोई राम बोल के मुझे बुलाता, कोई मौला कहके दे आवाज़
फिर नजाने ये झगड़ा कैसा, जब दोनों हैं मेरे दिल के पास

न कोई जाति, न कोई मज़हब, कोई नहीं है मुझे गवारा
जो थामे हाथ इंसानियत का, वो ही है केवल मुझे प्यारा
पर देख के इनको लड़ता, मन मेरा लाचार है
जैसे मेरे घर के बीच खींच गई दीवार है

ये जलते शहर, जलते घर...
क्यों हर दिल में छुपी हुई एक ज्वाला है
जिसने इनकी आत्मा को जला डाला है
धर्म, जाती से ऊपर हूँ मैं, इसमे नहीं है कोई सवाल
फिर क्यों लड़ पड़ते हैं ये दोनों, जब दोनों का ही खून है लाल

जब हर कण में, हर क्षण में, हर वेश में मैं समाता हूं
इबादत करते वक़्त कभी राम तो कभी अल्लाह बन के याद आता हूं
अगर इतनी सी बात इन्हें कोई नहीं समझाएगा
तो पुराण और कुरान के दरमियां फासला कैसे मिट पाएगा

बिखरा हुआ वजूद अपना आज फिर से संजो रहा हूं
इस लिये कोने पे खड़ा हो के 'रो' रहा हूं


- मनप्रीत

गुरुवार, फ़रवरी 24, 2022

खामोशी



कितना अच्छा होता, हर बात हम तुमसे कह पाते
*रंज-ओ-गम दिल के तुम्हे बता पाते
लहरें जो अंदर उठ रही हैं
साहिल तक पहुंचा पाते
अच्छा होता, हर बात हम तुमसे कह पाते

हर लफ्ज़ ज़ुबां तक ला पाते
तेरे सवालों का जवाब दे पाते
कभी खुद से भी हम लड़ पाते
मन अपने को पढ़ पाते
अच्छा होता, हर बात हम तुमसे कह पाते

हर ज़ख्म को अपने दिखा पाते
मुखोटा चहरे से हटा पाते
दर्द दिए हैं तूने कितने
ये तुझको हम जता पाते
अच्छा होता, हर बात हम तुमसे कह पाते

बहराल,

होंठ सिले हुए हैं मेरे
ज़ुबान मेरी खामोश पड़ी है
सीने से उठ रहा है धुआं, जो नहीं किसी को दिख रहा है
दर्द अब नमी बनके पलकों तले, आंखों से मेरी रिस रहा है
यही समझ रहा हूँ बस अब
कि मैं मिट रहा हूँ, या ये (दर्द) मिट रहा है...


*रंज-ओ-गम = Grief and Sorrow


- मनप्रीत