Meaning of Gunchaa

गुरुवार, दिसंबर 30, 2021

एक "कोना" ऐसा भी...



क्यों ना आज...

घर के किसी कोने में कोई ऐसी जगह ढूंढी जाए

जहाँ अपने साथ कुछ वक़्त बिताया जाए

जहां तन्हाई से कुछ बात की जाए और कुछ पुरानी यादों से मुलाकात की जाए

आओ आज कोने में बैठ के गुफ़्तगू खुद के साथ की जाए...


पर ध्यान रहे!

बातें इतनी मद्धम हों कि दिल के दीवारो-दर से बहार न जा पाएं

कानों को तो भनक भी न लग पाए और ज़ुबां से कुछ फ़िसल न जाए


उसके बाद...

पलकों तले, ज़हन में दबी हर बात को टटोला जाए

परत- दर- परत उसे खोला जाए

वो पल जिनसे कभी चेहरे पे मुस्कान आई थी, उन्हें फिर से वक़्त से उधार लिया जाए

आंसू जो गिरफ्तार पड़े थे सदियों से, कुछ देर के लिए उन्हें रिहा कर दिया जाए


तब जा के...

दिल पे रखे बोझ से छुटकारा होगा

फिर वो कोना घर का तुम्हे सबसे प्यारा होगा


- मनप्रीत


रविवार, नवंबर 21, 2021

मेरा दिल... जैसे एक गुब्बारा हो



मेरा दिल... जैसे एक गुब्बारा हो
जिसे प्यार की हवा का सहारा हो

कभी इस ओर, तो कभी उस ओर
इस जैसा न कोई आवारा हो

अपने प्यार से इसको थाम लेना
नाम इसका सरेआम न लेना

ध्यान रखना ! कहीं ये किसी ओर का न हो जाए
डोरी इसकी कहीं ओर न उलझ जाए

रंगों में इसके अपनी पहचान रखना
दिल के लिफाफे में, चुपके से अपना नाम रखना

और जब भर जाए मन तुम्हारा इससे...

चुभन भरे काँटों से दोस्ती इसकी करा देना
या तेज़ हवा के झोंके में, इसे तुम उड़ा देना

चमकेगा आसमान में बनके, जैसे टूटा हुआ तारा हो
मेरा दिल... जैसे एक गुब्बारा हो



- मनप्रीत


रविवार, सितंबर 19, 2021

कयोंकि नींद मेरी दोस्त है



जब पास जाता हूँ मैं बिस्तर के 
वो मुझे बुला लेता है
मौका देख के अपनी वो साज़िश को अंजाम देता है
वो कहता है" चाहे सोना नहीं, बस केवल दो पल के लिए लेट जा"

फिर मैं नादान... उसकी बातों में आ जाता हूँ
दबे पांव से उसकी और एक-एक कदम बढ़ाता हूँ
और धीरे-धीरे खुली बाहों से मुझको,
वो अपने आहोश में ले लेता है
तकिये को भी चुपके से अपनी, साज़िश में शामिल कर लेता है
जब सर रखता हूँ मैं ज़ानों * पे तकिये की,
वो लोरी मुझे सुनाता है
अपनी दोस्त "नींद" से भी, मेरा तआरुफ़ * कराता है
और बाकी की कहानी मेरी माँ पूरी कर देती है
चुपके से आकर मेरे, पैरों पे चादर ओढ़ा देती है

जब मकसद सबका पूरा हो जाता है
और आंखों पे मेरी ताला लग जाता है
मैं कुछ देर सो लेता हूँ
बस इस ही तरह हफ़्ते की छुट्टी, मैं अपनी पूरी कर लेता हूँ

...कयोंकि नींद मेरी दोस्त है

* ज़ानों : Laps
तआरुफ़ : Introduction


- मनप्रीत

रविवार, सितंबर 12, 2021

बूँदें...


न दिखें किसी को आंसू मेरे
न गम का हो आभास
इसीलिए चेहरे पे अपने, हंसी पिरोया करते हैं
बरसात के मौसम में अक्सर, हम खुल के रोया करते हैं

हर बूंद जो अम्बर से है गिरती
सीने पे घाव है गहरा करती
बादलों की गर्जन में हम, सिसकियों की आवाज़ दबाया करते हैं
बरसात के मौसम में अक्सर, हम खुल के रोया करते हैं

आवाज़ ये बारिश की मेरे कानों को चीर जाती है
टिप- टिप करती जैसे मेरे ज़ख्मों पे नमक लगाती है
फिराक-ए-यार* का इस मौसम में, लुत्फ उठाया करते हैं
बरसात के मौसम में अक्सर, हम खुल के रोया करते है

कभी कभी लगता है ऐसे
अम्बर भी रोता हो जैसे
हिकायतें* मोहब्बत की वो हमसे, कुछ इस तरह नुमाया* करता है
की साथ मेरे इस मौसम में, अम्बर भी रोया करता है


* फिराक-ए-यार : Pain of Separation
नुमाया : पेश, Represent
हिकायत : कहानी



- मनप्रीत

शनिवार, अगस्त 28, 2021

शेयर मार्किट की कहानी, हमको है सुनानी




शेयर मार्केट की सवारी, हम पे पढ़ गई भारी
इंडेक्स बना है गोली,
पर पोर्टफोलियो मेरे में है खून की होली
हर शेयर ऊपर भाग रहा है,
पर मेरे वाला वहीं नाच रहा है


जो बेचता हूँ, वो ऊपर भाग जाता है,
जो खरीदता हूँ, वो औंधे मूंह गिर जाता है
Tata Steel, Happiest Minds, Infy, हर शेयर ऊंचाइयों के मज़े लूट रहा है
पर मेरे वाला हर रोज़ 2-4 रुपए टूट रहा है
जो सोया हुआ था बरसों से, वो भी अब जाग उठा है,
पर लगता है मेरा शेयर, मोह माया सब त्याग चुका है


हर Multibagger मेरा, अब  के फेल हो गया,
जिसमे थी बढ़ने की उम्मीद, उसमे भी खेल हो गया
अरे, Vodafone-Idea भी अब तो मेरा फेल हो गया
बस अब Yes Bank पे है, टिकी उम्मीद सारी,
पर उसने भी कर रखी है गिरने की पूरी तैयारी


हां ! पर एक शेयर था ऐसा, जिसका रंग अभी हरा था,
जो पूरे जोश से भरा था और गिरते बाज़ार में भी सीना ताने खड़ा था
अब तो बस वही था, जिस ने मेरी नाओ बचाये रख्खी थी,
जैसे फेल बच्चों की क्लास में मैंने, किसी से डिस्टिंक्शन की आस रख्खी थी
पर जब अपने Profit के चक्कर में, मैंने उसे ही काट दिया,
अगले ही दिन कंपनी ने One+One का बोनस बांट दिया


हर रोज़ IPO एक नया बाजार में आ जाता है,
पर मेरे inbox में अक्सर, रिफंड का मेल दिख जाता है
जो allotment आती है गलती से, होता नहीं है उसमे Listing Gain
और आखिर में वो भी बन के, रह जाता है बस एक Pain
नहीं करूँगा कोई सौदा, कसम यही मैं खता हूँ
पर फिर अगले दिन ही मैं, IPO में bid लगता हूँ


Bull Run में है पूरा मार्केट
चाहे कोई हो Exchange
पर जेब मेरी में अब तो यारो, बची हुई है केवल "चेंज"
मत पूछो बस अब तुम मुझसे, कितने मैं गवा चुका हूं
मैं 4 पैसे कमाने की चाहत में, लाखों अपने फसा चुका हूं



- मनप्रीत

गुरुवार, अगस्त 26, 2021

आईने से गुफ़्तगू...




आईना मुझसे कुछ कहता है
कि तेरे घर में अब तुझ जैसा कोई नही रहता है

वो कहता है कि...

देख तेरी सूरत कितनी बदल गई है
"कलमों" (Sideburns) में सफ़ेद चांदनी बिखर गई है...
हर पका हुआ सफ़ेद बाल ये बताता है
की तेरे उम्र में हो गया आज कुछ इज़ाफ़ा है
पर रगों में ख़ून अब और रवां हो गया है
लगता है तू अब थोड़ा और जवां हो गया है

माथे पे लकीरें अब नज़र आने लगी हैं
नज़र भी कुछ-कुछ धोखा खाने लगी है
यादाश्त भी... ट्यूब लाइट की तारा फढ़- फढ़ाने लगी है
पर बातों में तेरी अब मुझे गहराई नज़र आने लगी है

माना कि कभी-कभी तुम्हे  ...
चलने में तक़लीफ़ होती है
घुटनों में ग्रीस कुछ कम महसूस होती है
और बैठे-बैठे अब तशरीफ़ कुछ ज़्यादा सुन होती है
हर चीज़ अब दिल जलती(Heartburn) है
पर दिल की आवाज़ अब तुझे ज़्यादा समझ आती है

देखता हूँ तुझे तो मुझे यकीन नही होता है
कि तू वो ही है, जो खुद पे इतना मरता था ?
शक़्ल तेरी ख़राब हो, पर साफ़ मेरा मुँह करता था

पर तू मायूस मत होना

क्योंकि... उम्र तेरी अब लज़्ज़त (Swad, Maza) दिलाने लगी है
ज़िन्दगी के इस मोड़ पे भी तुझ पे जवानी छाने लगी है
याद रखना... हर उम्र का अपना मज़ा होता है
क्योंकि चालीस के बाद ही तो आदमी जवां होता है


MEN WILL BE MEN ;)

- मनप्रीत

शनिवार, अगस्त 21, 2021

बातें, कुछ अनकहीं सी, कुछ अनसुनी सी...





कुछ वो न बोली
कुछ मैं ना बोला
फिर भी बातें हुईं हज़ार
क्या ऐसे ही होता है प्यार का इज़हार!

नब्ज़ कुछ उसकी भी थमी थी
हथेलियों पे बर्फ कुछ मेरी भी जमी थी
धड़कनो में थी गज़ब की रफ़्तार
क्या ऐसे ही चढ़ता है प्यार का बुखार!

आंखों ने उसकी हर बात की
मेरी पलकों ने भी... हर बात पे सजदा किया
फिर भी नज़रों में थी उसके हया बेशुमार
क्या ऐसे ही मिलती हैं प्यार में नज़रें पहली बार!

उसने जो-जो नहीं कहा, मैंने वो सब सुना
कांपते होठों पे आए उसके, हर एक लफ्ज़ को बुना
माथे पे आईं उसकी सिलवटों को पढ़ा कईं बार
क्या ऐसे ही समझ में आता है प्यार!

पर सच तो ये था...

कि सामने बैठी थी वो मेरे
और मैं उसे देख रहा था
हर गुज़रते हुए लम्हे को, यादों में कहीं समेट रहा था
पर दूरियां कुछ इस कदर बढ़ चुकी थी
की कहानी मेरी लिखने से पहले ही मिट चुकी थी


- मनप्रीत

रविवार, अगस्त 01, 2021

जो मांगी थी दुआ...















ना जाने वक्त को क्या मंज़ूर था
लगता जो बहुत दूर था
आज वो इतने करीब आ गया
माज़ी (Past) के भरे हुए ज़ख्मों को फिर से सहला गया
जो मांगी थी सजदे में हाथ उठा कर मैने, वो फिर से याद आ गई
लगता है आज मेरी दुआ क़ुबूल होने कि बारी आ गई


पर ए खुदा! पूछता हूँ मैं तुझसे...
क्या करूं मैं इस दुआ का अब ??
जिसका अब कोई वजूद नहीं
मैं तो... मैं तो इसे कब का भुला चुका हूं
सीने में कहीं दफ़ना चुका हूं
फिर क्यों तूने ये पूरी कर दी ??
क्या मेरी फेरी हुई तस्बीह (जप माला) ने तेरी आँखें भरदी ?


पर कुछ ऐसे किस्से, कुछ ऐसी यादें
जिन्हें न जता सकता हूं, न छुपा सकता हूं, न दिखा सकता हूं
जिन्हें सिर्फ पलकों तले दबा सकता हूँ
जिन्हें मैं अपनी हाथों की लकीरों से भी मिटा चुका हूं
डरता हूँ, कहीं फिर न वो सामने आ जाए
और अश्क बन कर मेरे दामन में छलक जायें


पर वादा है मेरा तुझसे खुदा...


एक रोज़ जब मैं घर आऊंगा तेरे
लूँगा तुझसे हिसाब, दिए गए हर दर्द का मेरे
पर मैं जानता हूँ...
मेरे हर सवाल को तू हंस के टाल देगा
हर बात में मेरी ही गलती निकल देगा ज़रूर
शायद मेरी एक और माज़ी (Past) की दुआ कर देगा क़ुबूल


- मनप्रीत

शुक्रवार, जुलाई 23, 2021

वो एक पल...

 



जिसका का था ता-उम्र इंतज़ार
न इल्म था, वो पल कुछ इस तरह आएगा
एक तेज़ हवा का झोंका बनके, मुझे साथ ले जाएगा
और मैं... और मैं एक सूखे पत्ते की जैसे उसमे कहीं खो जाऊंगा
संभालना चाहूं खुदको, फिर भी नहीं संभाल पाऊंगा

पर शायद, ये ही तो मैं चाहता था!

की वो पानी के जैसे बहती रहे, मैं तिनके के जैसे बह जाउं
वो शम्मा के जैसी जलती रहे, और मैं परवाना बन के जल जाउं

पर अफ़सोस...

पर अफ़सोस इसी बात का रह गया
कि वो पल चंद लम्हों में बह गया
रोकना चाहा मैने उसे, पर वो पल रुका नहीं
यादों में जब झांका, तो भी कहीं दिखा नहीं
ख़्वाब था शायद, ख़्वाब ही होगा...


- मनप्रीत

रविवार, अप्रैल 04, 2021

दिल क्या ढूंढता फिरे...

दिल क्या ढूंढता फिरे
दो पल सकून के, कुछ पल आराम के
पर मंज़िल पे पहुंच के भी तू बैठा ना विश्राम से

तू भागता रहा हर पल
तू त्यागता रहा हर पल
वह दो पल मुस्कान के
ये दिल क्या ढूंढता फिरे
दो पल सकून के, कुछ पल आराम के

जो पा ना सका, तुझे उसकी तलाश है
जो पा लिया तूने उसके खोने का आभास है
सब कुछ जीतने की चाहत में
तू सब कुछ हारता फिरे
ये दिल क्या ढूंढता फिरे
दो पल सकून के, कुछ पल आराम के

जिसे पकड़ ना पाया तू उसे पकड़ना चाहता है(वक़्त)
जिस समझ ना पाया तू उसे समझना चाहता है(ज़िन्दगी)
जो छलक गया इन आंखों से, क्यों उसे समेटना चाहता है
इस गांठ लगी ज़िन्दगी को तू और क्यों उलझाता फिरे
दिल क्या ढूंढता फिरे,
दो पल सकून के, कुछ पल आराम के

अगर जीना चाहता है तू चैन से, तो सुन

WhatsApp, Instagram से रिश्ता तोड़ दे
Facebook, Twitter, और TikTok से तू मूंह मोड़ ले, 
छोड़ दे करना अपना STATUS update
क्यों करता है किसी के LIKE वेट
अब ज्वाइन करले तू Tinder
वहां बैठी है लड़की सुंदर
करले उससे आंखे दो चार
ज़िंदगी में और क्या रखा है मेरे यार
पर उसमें भी तू सुशील, संस्कारी खोजता फिरे,
ये दिल क्या ढूंढता फिरे
दो पल सकून के, कुछ पल आराम के

पर सच पूछो तो आराम तुझे तब ही मिल पाएगा
जब तू मधुशाला में जा के दो पेग लगाएगा
टेंशन का चखना बना के खा जाएगा
फिर दिल को नहीं होगा इंतज़ार किसी बात का
वह केवल इंतज़ार करेगा रात का
वह केवल इंतज़ार करेगा रात का...



- मनप्रीत

Nursery Admission




टूट गई है चप्पल मेरी
उखड़ गया है सोल आधा
बच्चे के admisson के चक्कर में
मैं कहां-कहां नहीं भागा

पर मुझे याद है आज भी वो दिन
जब दाखिले के लिए मैंने

MLA, मंत्री तक का दरवाज़ा खट- खटाया था
पर कोई मेरे काम नहीं आया था
किसी ने दिए थे बड़े आश्वासन
किसी ने मांगी माया
किसी ने कहा चिट्ठी ले जाओ, तो किसी ने कहा
तुम पहुचों, मेरे P.A. का फ़ोन बस आया

थक हार के मैं...
पीर - फकीरों के दरवाज़े पर भी आया
ताबीजें बंदवाई, टोटका करवाया,
हर तरह का मंतर फिरवाया
फिर भी कुछ काम न आया
इस दाखिले के ख़्वाब ने, मुझे कई रात जगाया

लॉटरी निकलेगी या नहीं
यही सपना रात को डराता था
ऐसे सिस्टम के चलते ही
भविष्य इन बच्चों का, अंधेरे में नज़र आता था

दखीले के लिए, कोई मांगता 5 लाख
कोई 4 लाख में था तैयार
ऐसे लगता है मानो
शिक्षा के मंदिर को बना डाला बाज़ार

शिक्षा, सिद्धान्तों का कोई मोल नहीं,
ये तो हर बच्चे का अधिकार है
अगर ये भी न दे पाए उसे हम
तो समझो समाज हमारा लखवे (paralysis) का शिकार है



- मनप्रीत

Corona Warrior

 


मुँह पे मास्क, हाथों में gloves पहनता हूँ
आधा लीटर sanitizer मलता हूँ
Facesheild लगाता हूँ
अब मैं डॉक्टर जैसा नज़र आता हूँ

माँ मेरी कहती थी, "बेटा डॉक्टर बनना"
आज देख के मुझे, खुशी से उसकी आंखें भर आती हैं
आते-जाते मुझे वो sanitizer का तिलक लगती है
और ऑफिस के चक्रव्यू मैं घुसने से पहले "दो गज़" की दूरी का पाठ पढ़ाती है

फिर कुछ घबराती है
कांपते हुए हाथों से मुझे PPE kit पहनाती है
पर देख कर मुझे, गर्व से उसका सीस उठ जाता है
आखों में एक चमक आ जाती है
जैसे किसी डॉक्टर के पहले ऑपरेशन के बाद मरीज़ की जान बच जाती है



- मनप्रीत

कोरोना


हर गली, नुक्कड़, चौराहे पर अब कोई नज़र नहीं आता है
सुनसान मुहल्ले हैं, वीरान पड़े रास्ते हैं
न तो कोई गुरद्वारे जाता है, न कोई मंदिर की घंटी बजाता है
शहर मेरा मुझे अब बहुत वीरान नज़र आता है


रातों का सन्नाटा अब और हो गया है गहरा
हमारी आज़ादी पर अब लग गया है पहरा
फुर्सत के पल भी अब ये रास नही आते
मेरे शहर की तुम "नज़र" क्यों नही उतारते ?

सारे पशु -पक्षी, जानवर भी परेशान हैं, कहाँ छुप गए सब इंसान हैं ?
पहले तो हम पे बहुत धौंस जमात था
हर जानवर को सताता था
ये हमें दिए गए दर्द की मिली इससे सौग़ात है
एक virus ने दिखा दी इसे , इसकी क्या औक़ात है

खौफ़ कुछ ऐसा है जनाब,
कि दरवाज़ा खुला है मेरा, पर अब कोई आता नहीं
घर की मुंडेर पर मेरी अब, पंछी भी गुन- गुनाता नहीं
सुबह-शाम कुछ इस तरह उदास बीत जाती हैं
मानो किसी आने वाली क़यामत का आभास करती हैं

कभी-कभी याद करता हूं...

कहाँ गए वो दिन, जब बाज़ार में चाट-पकोड़ी खाया करते थे
छोले भटूरे, टिक्की, मोमोस तो अब बस सपनों की बात है
होठों पे अब भी मेरे गुलाब जामुन, हलवा और रसगुल्ले की चाशनी की मिठास है
पर रस्ते पर, न कोई ठेली, न खुली है कोई दुकान
कहीं नहीं मिलते अब वो स्वादिष्ठ पकवान
हाय रे इंसान, तूने बना डाला सारा शहर शमशान।



- मनप्रीत