न गम का हो आभास
इसीलिए चेहरे पे अपने, हंसी पिरोया करते हैं
बरसात के मौसम में अक्सर, हम खुल के रोया करते हैं
हर बूंद जो अम्बर से है गिरती
सीने पे घाव है गहरा करती
बादलों की गर्जन में हम, सिसकियों की आवाज़ दबाया करते हैं
बरसात के मौसम में अक्सर, हम खुल के रोया करते हैं
आवाज़ ये बारिश की मेरे कानों को चीर जाती है
टिप- टिप करती जैसे मेरे ज़ख्मों पे नमक लगाती है
फिराक-ए-यार* का इस मौसम में, लुत्फ उठाया करते हैं
बरसात के मौसम में अक्सर, हम खुल के रोया करते है
कभी कभी लगता है ऐसे
अम्बर भी रोता हो जैसे
हिकायतें* मोहब्बत की वो हमसे, कुछ इस तरह नुमाया* करता है
की साथ मेरे इस मौसम में, अम्बर भी रोया करता है
* फिराक-ए-यार : Pain of Separation
नुमाया : पेश, Represent
हिकायत : कहानी
- मनप्रीत
- मनप्रीत
1 टिप्पणी:
बहुत ही गहरा...
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