Meaning of Gunchaa

रविवार, अप्रैल 04, 2021

दिल क्या ढूंढता फिरे...

दिल क्या ढूंढता फिरे
दो पल सकून के, कुछ पल आराम के
पर मंज़िल पे पहुंच के भी तू बैठा ना विश्राम से

तू भागता रहा हर पल
तू त्यागता रहा हर पल
वह दो पल मुस्कान के
ये दिल क्या ढूंढता फिरे
दो पल सकून के, कुछ पल आराम के

जो पा ना सका, तुझे उसकी तलाश है
जो पा लिया तूने उसके खोने का आभास है
सब कुछ जीतने की चाहत में
तू सब कुछ हारता फिरे
ये दिल क्या ढूंढता फिरे
दो पल सकून के, कुछ पल आराम के

जिसे पकड़ ना पाया तू उसे पकड़ना चाहता है(वक़्त)
जिस समझ ना पाया तू उसे समझना चाहता है(ज़िन्दगी)
जो छलक गया इन आंखों से, क्यों उसे समेटना चाहता है
इस गांठ लगी ज़िन्दगी को तू और क्यों उलझाता फिरे
दिल क्या ढूंढता फिरे,
दो पल सकून के, कुछ पल आराम के

अगर जीना चाहता है तू चैन से, तो सुन

WhatsApp, Instagram से रिश्ता तोड़ दे
Facebook, Twitter, और TikTok से तू मूंह मोड़ ले, 
छोड़ दे करना अपना STATUS update
क्यों करता है किसी के LIKE वेट
अब ज्वाइन करले तू Tinder
वहां बैठी है लड़की सुंदर
करले उससे आंखे दो चार
ज़िंदगी में और क्या रखा है मेरे यार
पर उसमें भी तू सुशील, संस्कारी खोजता फिरे,
ये दिल क्या ढूंढता फिरे
दो पल सकून के, कुछ पल आराम के

पर सच पूछो तो आराम तुझे तब ही मिल पाएगा
जब तू मधुशाला में जा के दो पेग लगाएगा
टेंशन का चखना बना के खा जाएगा
फिर दिल को नहीं होगा इंतज़ार किसी बात का
वह केवल इंतज़ार करेगा रात का
वह केवल इंतज़ार करेगा रात का...



- मनप्रीत

Nursery Admission




टूट गई है चप्पल मेरी
उखड़ गया है सोल आधा
बच्चे के admisson के चक्कर में
मैं कहां-कहां नहीं भागा

पर मुझे याद है आज भी वो दिन
जब दाखिले के लिए मैंने

MLA, मंत्री तक का दरवाज़ा खट- खटाया था
पर कोई मेरे काम नहीं आया था
किसी ने दिए थे बड़े आश्वासन
किसी ने मांगी माया
किसी ने कहा चिट्ठी ले जाओ, तो किसी ने कहा
तुम पहुचों, मेरे P.A. का फ़ोन बस आया

थक हार के मैं...
पीर - फकीरों के दरवाज़े पर भी आया
ताबीजें बंदवाई, टोटका करवाया,
हर तरह का मंतर फिरवाया
फिर भी कुछ काम न आया
इस दाखिले के ख़्वाब ने, मुझे कई रात जगाया

लॉटरी निकलेगी या नहीं
यही सपना रात को डराता था
ऐसे सिस्टम के चलते ही
भविष्य इन बच्चों का, अंधेरे में नज़र आता था

दखीले के लिए, कोई मांगता 5 लाख
कोई 4 लाख में था तैयार
ऐसे लगता है मानो
शिक्षा के मंदिर को बना डाला बाज़ार

शिक्षा, सिद्धान्तों का कोई मोल नहीं,
ये तो हर बच्चे का अधिकार है
अगर ये भी न दे पाए उसे हम
तो समझो समाज हमारा लखवे (paralysis) का शिकार है



- मनप्रीत

Corona Warrior

 


मुँह पे मास्क, हाथों में gloves पहनता हूँ
आधा लीटर sanitizer मलता हूँ
Facesheild लगाता हूँ
अब मैं डॉक्टर जैसा नज़र आता हूँ

माँ मेरी कहती थी, "बेटा डॉक्टर बनना"
आज देख के मुझे, खुशी से उसकी आंखें भर आती हैं
आते-जाते मुझे वो sanitizer का तिलक लगती है
और ऑफिस के चक्रव्यू मैं घुसने से पहले "दो गज़" की दूरी का पाठ पढ़ाती है

फिर कुछ घबराती है
कांपते हुए हाथों से मुझे PPE kit पहनाती है
पर देख कर मुझे, गर्व से उसका सीस उठ जाता है
आखों में एक चमक आ जाती है
जैसे किसी डॉक्टर के पहले ऑपरेशन के बाद मरीज़ की जान बच जाती है



- मनप्रीत

कोरोना


हर गली, नुक्कड़, चौराहे पर अब कोई नज़र नहीं आता है
सुनसान मुहल्ले हैं, वीरान पड़े रास्ते हैं
न तो कोई गुरद्वारे जाता है, न कोई मंदिर की घंटी बजाता है
शहर मेरा मुझे अब बहुत वीरान नज़र आता है


रातों का सन्नाटा अब और हो गया है गहरा
हमारी आज़ादी पर अब लग गया है पहरा
फुर्सत के पल भी अब ये रास नही आते
मेरे शहर की तुम "नज़र" क्यों नही उतारते ?

सारे पशु -पक्षी, जानवर भी परेशान हैं, कहाँ छुप गए सब इंसान हैं ?
पहले तो हम पे बहुत धौंस जमात था
हर जानवर को सताता था
ये हमें दिए गए दर्द की मिली इससे सौग़ात है
एक virus ने दिखा दी इसे , इसकी क्या औक़ात है

खौफ़ कुछ ऐसा है जनाब,
कि दरवाज़ा खुला है मेरा, पर अब कोई आता नहीं
घर की मुंडेर पर मेरी अब, पंछी भी गुन- गुनाता नहीं
सुबह-शाम कुछ इस तरह उदास बीत जाती हैं
मानो किसी आने वाली क़यामत का आभास करती हैं

कभी-कभी याद करता हूं...

कहाँ गए वो दिन, जब बाज़ार में चाट-पकोड़ी खाया करते थे
छोले भटूरे, टिक्की, मोमोस तो अब बस सपनों की बात है
होठों पे अब भी मेरे गुलाब जामुन, हलवा और रसगुल्ले की चाशनी की मिठास है
पर रस्ते पर, न कोई ठेली, न खुली है कोई दुकान
कहीं नहीं मिलते अब वो स्वादिष्ठ पकवान
हाय रे इंसान, तूने बना डाला सारा शहर शमशान।



- मनप्रीत