Meaning of Gunchaa

रविवार, अप्रैल 04, 2021

कोरोना


हर गली, नुक्कड़, चौराहे पर अब कोई नज़र नहीं आता है
सुनसान मुहल्ले हैं, वीरान पड़े रास्ते हैं
न तो कोई गुरद्वारे जाता है, न कोई मंदिर की घंटी बजाता है
शहर मेरा मुझे अब बहुत वीरान नज़र आता है


रातों का सन्नाटा अब और हो गया है गहरा
हमारी आज़ादी पर अब लग गया है पहरा
फुर्सत के पल भी अब ये रास नही आते
मेरे शहर की तुम "नज़र" क्यों नही उतारते ?

सारे पशु -पक्षी, जानवर भी परेशान हैं, कहाँ छुप गए सब इंसान हैं ?
पहले तो हम पे बहुत धौंस जमात था
हर जानवर को सताता था
ये हमें दिए गए दर्द की मिली इससे सौग़ात है
एक virus ने दिखा दी इसे , इसकी क्या औक़ात है

खौफ़ कुछ ऐसा है जनाब,
कि दरवाज़ा खुला है मेरा, पर अब कोई आता नहीं
घर की मुंडेर पर मेरी अब, पंछी भी गुन- गुनाता नहीं
सुबह-शाम कुछ इस तरह उदास बीत जाती हैं
मानो किसी आने वाली क़यामत का आभास करती हैं

कभी-कभी याद करता हूं...

कहाँ गए वो दिन, जब बाज़ार में चाट-पकोड़ी खाया करते थे
छोले भटूरे, टिक्की, मोमोस तो अब बस सपनों की बात है
होठों पे अब भी मेरे गुलाब जामुन, हलवा और रसगुल्ले की चाशनी की मिठास है
पर रस्ते पर, न कोई ठेली, न खुली है कोई दुकान
कहीं नहीं मिलते अब वो स्वादिष्ठ पकवान
हाय रे इंसान, तूने बना डाला सारा शहर शमशान।



- मनप्रीत

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