वो मुझे बुला लेता है
मौका देख के अपनी वो साज़िश को अंजाम देता है
वो कहता है" चाहे सोना नहीं, बस केवल दो पल के लिए लेट जा"
मौका देख के अपनी वो साज़िश को अंजाम देता है
वो कहता है" चाहे सोना नहीं, बस केवल दो पल के लिए लेट जा"
फिर मैं नादान... उसकी बातों में आ जाता हूँ
दबे पांव से उसकी और एक-एक कदम बढ़ाता हूँ
और धीरे-धीरे खुली बाहों से मुझको,
वो अपने आहोश में ले लेता है
तकिये को भी चुपके से अपनी, साज़िश में शामिल कर लेता है
जब सर रखता हूँ मैं ज़ानों * पे तकिये की,
वो लोरी मुझे सुनाता है
अपनी दोस्त "नींद" से भी, मेरा तआरुफ़ * कराता है
और बाकी की कहानी मेरी माँ पूरी कर देती है
चुपके से आकर मेरे, पैरों पे चादर ओढ़ा देती है
अपनी दोस्त "नींद" से भी, मेरा तआरुफ़ * कराता है
और बाकी की कहानी मेरी माँ पूरी कर देती है
चुपके से आकर मेरे, पैरों पे चादर ओढ़ा देती है
जब मकसद सबका पूरा हो जाता है
और आंखों पे मेरी ताला लग जाता है
मैं कुछ देर सो लेता हूँ
बस इस ही तरह हफ़्ते की छुट्टी, मैं अपनी पूरी कर लेता हूँ
...कयोंकि नींद मेरी दोस्त है
* ज़ानों : Laps
तआरुफ़ : Introduction
- मनप्रीत