Meaning of Gunchaa

सोमवार, जुलाई 10, 2023

तैरता शहर गुरुग्राम...

Podcast version of the poem


चुल्लू भर बरसात में ही, शहर मेरा डूब जाता है
बारिश में गुरुग्राम घूमने का, मज़ा अलग ही आता है

घरों में पानी, रोड पे पानी, हर गली-कूचा भर जाता है
गुरुग्राम हमारा हमें फिर, Venice जैसा नज़र आता है

अलौकिक वो नज़ारा होता है
हर शख्स Cab नहीं, मानो Gandola में ऑफिस आ रहा होता है

Cybercity बनाने की चाहत में, बन हर जगह Swimming Pool गए हैं
शहर बसने से पहले, नाली बनाना भूल गए हैं

सड़क बनाई है बेचारों ने, भर के गड्ढे एक-एक
पर जब देखा तो हर घर के आगे, बन गई थी Sukna Lake

सड़क पर गड्ढे नहीं, गड्ढों में सड़क दिखती है अब
3 घंटे से निकला हूँ घर से, न जाने पहुँचगा कब

चलो, शहर तो बसा लिया तुमने, पर इसे डूबने से कैसे बचाओगे
Work from Home बहुत कर लिया हमने,
अब क्या Work from Riverside कराओगे ?

नहीं चाहिए शहर ऐसा जो हल्की रिमझिम में ढ़ह गया है
'शंघाई' बनाने का सपना हमारा, नालियों में बह गया है


- मनप्रीत

सोमवार, मई 29, 2023

रूठा हुआ चाँद...

Podcast version of the poem

कल रात चाँद कुछ उदास था तारों से भी नाराज़ था
चांदनी भी कुछ फीकी थी
सुना है सूरज की निगाहें भी दिन में तीखी थीं

मेरे लाख मनाने के बाद भी, चाँद नहीं मुस्कुराया
बादलों की *दुशाला के पीछे था उसने मुँह छुपाया
सितारे सो गए थे, वक़्त जैसे ठहर गया था
चाँद की राह देखते-देखते बीत रात का पहर गया था

बादल चले जा रहे थे
मानो चाँद के घर से वो भी मायूस आ रहे थे
तारों की टिम-टिमाहट में भी नहीं वो बात थी
क्या कहूं, वो कितनी अकेली रात थी

रात गुज़ारी हमने *फ़िराक़-ए-यार में
बैठे रहे राह ताकते हुए, चाँद के इनतिज़ार में
कभी आंखे मलते रहे, कभी पलकों को जगाते रहे
जल्द आएगा वो, ये कह के दिल को बहलाते रहे

सुबह होते-होते आखरी संदेसा पहुचाया सूरज के हाथ में
"चाहे पूरा नहीं, तो आधा आ
एक झलक अपनी दिखला के जा
आसमान के माथे की बिंदिया बनके
प्यास बादलों की बुझाता जा"

पर किरणों ने कहां, चाँद मिला नहीं कहीं खो गया है
किसी और देस में जा के, परदेसी हो गया है
उसका विश्वास मत करना, रूप उसका हर रोज़ बदल जाता है
कभी आधा, कभी पूरा, तो कभी ईद का चाँद बन जाता है

*दुशाला - चदर
फ़िराक़-ए-यार - separation from loved one

- मनप्रीत

गुरुवार, फ़रवरी 02, 2023

मिट्टी का पुतला...


Podcast version of the poem
मिट्टी के आंसू मेरे
मिट्टी के जज़्बात
इस मिट्टी के पुतले की
क्या मैं करूं अब बात

मोल हर बात का मिट्टी इसकी
मिट्टी की है ये काया
इस पुतले की "मैं" की ख़ातिर
जाने कितनों से मूंह मोड़ आया

कभी सर चढ़ के बोलता अभिमान
कभी माया का इसे गुमान
पल भर का भरोसा नहीं
कब पुतले से उड़ जाए जान

इस मिट्टी के पुतले ने
खूब मुझे नचाया
"दो रोटी" पाने की ख़ातिर
दिन का चैन गवाया

पर भेद इस बेचैन जीव का
किसी ने ना पाया
सब कुछ पाने के बाद भी
क्यों "दो पल" न सो पाया

समाज के बंधनों ने इस पुतले पे
कर रखा इख़्तियार है
जो न सुकून से जीने देता है
और न छोड़ने को तैयार है

सुपुर्द-ए-खाक (मिट्टी) होने के बाद शायद
इसे कहीं करार आए
पर डरता हूँ, कहीं कब्र में भी बद-इनतेज़ामी की
शिकायत न ये रब से लगाए


- मनप्रीत

शनिवार, जनवरी 07, 2023

आधी बातें... आधे मतलब...

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जाते-जाते आज फिर वो बात अधूरी छोड़ गया
मेरी लिखी कहानी को, हाथों से अपने मिटो गया

कहनी थी कई बातें उसको, सुननी थीं कई बातें उसकी
पर माथे कि लकीरों को अपनी, हर बात पे मेरी सिकोड़ गया
जाते-जाते आज फिर वो बात अधूरी छोड़ गया

यूँ तो बात छुपना आता नहीं उसे
पर अपनी खामोशी के पीछे, सवाल हज़ारों छोड़ गया
जाते-जाते आज फिर वो बात अधूरी छोड़ गया

अपना समझ के मैंने उसको दिल का राज़ बताया था
पर सीधी सी बात मेरी को, वो टेढ़ा-मेढ़ा मरोड़ गया
जाते-जाते आज फिर वो बात अधूरी छोड़ गया

हर बात पे मेरी, ज़िक्र उसका ही आता था
पर देख के मुझको आज, चुपके से मूँह मोड़ गया
जाते-जाते आज फिर वो बात अधूरी छोड़ गया

तुम्ही बताओ...
साथ अधूरी बातों का, आधी हुई मुलाकातों का, जिनका रंग हमेशा ही फीका है
उन्हें ज़हन में रख के जीना, क्या ये भी कोई तरीका है?


- मनप्रीत