Meaning of Gunchaa

गुरुवार, फ़रवरी 02, 2023

मिट्टी का पुतला...


Podcast version of the poem
मिट्टी के आंसू मेरे
मिट्टी के जज़्बात
इस मिट्टी के पुतले की
क्या मैं करूं अब बात

मोल हर बात का मिट्टी इसकी
मिट्टी की है ये काया
इस पुतले की "मैं" की ख़ातिर
जाने कितनों से मूंह मोड़ आया

कभी सर चढ़ के बोलता अभिमान
कभी माया का इसे गुमान
पल भर का भरोसा नहीं
कब पुतले से उड़ जाए जान

इस मिट्टी के पुतले ने
खूब मुझे नचाया
"दो रोटी" पाने की ख़ातिर
दिन का चैन गवाया

पर भेद इस बेचैन जीव का
किसी ने ना पाया
सब कुछ पाने के बाद भी
क्यों "दो पल" न सो पाया

समाज के बंधनों ने इस पुतले पे
कर रखा इख़्तियार है
जो न सुकून से जीने देता है
और न छोड़ने को तैयार है

सुपुर्द-ए-खाक (मिट्टी) होने के बाद शायद
इसे कहीं करार आए
पर डरता हूँ, कहीं कब्र में भी बद-इनतेज़ामी की
शिकायत न ये रब से लगाए


- मनप्रीत

2 टिप्‍पणियां:

Gautam S Sajwan ने कहा…

Paaji..... podcast bhi mst hai...or poem to hai hi

Amandeep Kaur ने कहा…

Very well explained...the reality of life... 👍