चांदनी भी कुछ फीकी थी
सुना है सूरज की निगाहें भी दिन में तीखी थीं
मेरे लाख मनाने के बाद भी, चाँद नहीं मुस्कुराया
बादलों की *दुशाला के पीछे था उसने मुँह छुपाया
सितारे सो गए थे, वक़्त जैसे ठहर गया था
चाँद की राह देखते-देखते बीत रात का पहर गया था
बादल चले जा रहे थे
मानो चाँद के घर से वो भी मायूस आ रहे थे
तारों की टिम-टिमाहट में भी नहीं वो बात थी
क्या कहूं, वो कितनी अकेली रात थी
रात गुज़ारी हमने *फ़िराक़-ए-यार में
बैठे रहे राह ताकते हुए, चाँद के इनतिज़ार में
कभी आंखे मलते रहे, कभी पलकों को जगाते रहे
जल्द आएगा वो, ये कह के दिल को बहलाते रहे
कभी आंखे मलते रहे, कभी पलकों को जगाते रहे
जल्द आएगा वो, ये कह के दिल को बहलाते रहे
सुबह होते-होते आखरी संदेसा पहुचाया सूरज के हाथ में
"चाहे पूरा नहीं, तो आधा आ
एक झलक अपनी दिखला के जा
आसमान के माथे की बिंदिया बनके
प्यास बादलों की बुझाता जा"
पर किरणों ने कहां, चाँद मिला नहीं कहीं खो गया है
किसी और देस में जा के, परदेसी हो गया है
किसी और देस में जा के, परदेसी हो गया है
उसका विश्वास मत करना, रूप उसका हर रोज़ बदल जाता है
कभी आधा, कभी पूरा, तो कभी ईद का चाँद बन जाता है
*दुशाला - चदर
फ़िराक़-ए-यार - separation from loved one
- मनप्रीत
6 टिप्पणियां:
Wonderful writing and delivery 👌
Wah wah wah ... Kya khoob likha h .. aj kal Mausam kuch esa hi h 😬
Bahoot khubsurat lines & jajbat
Excellent!!!
Always loved ur poetry n now I hv become a fan of ur podcast👍
Very deep 👍
Beautiful
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