Meaning of Gunchaa

सोमवार, मई 29, 2023

रूठा हुआ चाँद...

Podcast version of the poem

कल रात चाँद कुछ उदास था तारों से भी नाराज़ था
चांदनी भी कुछ फीकी थी
सुना है सूरज की निगाहें भी दिन में तीखी थीं

मेरे लाख मनाने के बाद भी, चाँद नहीं मुस्कुराया
बादलों की *दुशाला के पीछे था उसने मुँह छुपाया
सितारे सो गए थे, वक़्त जैसे ठहर गया था
चाँद की राह देखते-देखते बीत रात का पहर गया था

बादल चले जा रहे थे
मानो चाँद के घर से वो भी मायूस आ रहे थे
तारों की टिम-टिमाहट में भी नहीं वो बात थी
क्या कहूं, वो कितनी अकेली रात थी

रात गुज़ारी हमने *फ़िराक़-ए-यार में
बैठे रहे राह ताकते हुए, चाँद के इनतिज़ार में
कभी आंखे मलते रहे, कभी पलकों को जगाते रहे
जल्द आएगा वो, ये कह के दिल को बहलाते रहे

सुबह होते-होते आखरी संदेसा पहुचाया सूरज के हाथ में
"चाहे पूरा नहीं, तो आधा आ
एक झलक अपनी दिखला के जा
आसमान के माथे की बिंदिया बनके
प्यास बादलों की बुझाता जा"

पर किरणों ने कहां, चाँद मिला नहीं कहीं खो गया है
किसी और देस में जा के, परदेसी हो गया है
उसका विश्वास मत करना, रूप उसका हर रोज़ बदल जाता है
कभी आधा, कभी पूरा, तो कभी ईद का चाँद बन जाता है

*दुशाला - चदर
फ़िराक़-ए-यार - separation from loved one

- मनप्रीत

6 टिप्‍पणियां:

Mandeep Singh ने कहा…

Wonderful writing and delivery 👌

बेनामी ने कहा…

Wah wah wah ... Kya khoob likha h .. aj kal Mausam kuch esa hi h 😬

बेनामी ने कहा…

Bahoot khubsurat lines & jajbat

Amandeep Kaur ने कहा…

Excellent!!!
Always loved ur poetry n now I hv become a fan of ur podcast👍

बेनामी ने कहा…

Very deep 👍

Niharika ने कहा…

Beautiful