Meaning of Gunchaa

बुधवार, अक्तूबर 14, 2009

कुछ कमी मुझ में ही होगी...

जो आज वो मुझसे रूठ गया,
कुछ कमी मुझ में ही होगी...
दिल ने चाहा उसे रोकना, पर रोक न सका,
कुछ कमी मुझ में ही होगी...


जहाँ झुकना था वहां झुक न सका,
जहाँ रुकना था वहां रुक न सका,
मंजिल तो करीब थी पर पहुँच न सका,
शायद इसलिए जो बनना था वो बन न सका,
कुछ कमी मुझ में ही होगी...


आँखें तो हज़ार थी पर, किसी का नूर बन न सका,
दिल तो हज़ार थे पर किसी में घर कर न सका,
सफ़र में दोस्त तो लाखों मिले, पर कोई दिलबर मिल न सका,


कुछ कमी मुझ में ही होगी...
कुछ कमी मुझ में ही होगी...


जिसका इंतज़ार था मुझे उसने मुझे देखा नहीं,
जिसके लिए रुका था मैं वो मेरे लिए रुका नहीं,
प्यार के खंजर से उसने मेरा कत्ल किया,
पर मैंने कहा दर्द अभी हुआ नहीं...


क्योंकि...


कुछ कमी मुझ में ही होगी...
कुछ कमी मुझ में ही होगी...

दिल तो रोता है मेरा भी,
पर कोई आंसू टपकता नहीं,
इस दुनिया के अंधियारे में
अब कोई हाथ मेरा पकड़ता नहीं

ज़रूर...

कुछ कमी मुझ में ही होगी...
कुछ कमी मुझ में ही होगी...


- मनप्रीत

गुरुवार, अक्तूबर 08, 2009

इंतजार... Wait that never ends...



कमरे के एक कोने में मद्धम सी लौ जलती है,
न जाने किस उम्मीद में रोशन इस अन्जुमन को करती है,




जैसे- जैसे रात का नशा बढ़ता है, हल्का-हल्का सा सुरूर चढ़ता है,
चारों और सन्नाटा है, दूर तक कोई शख्स नज़र नहीं आता है


सन्नाटा पहले इतना खामोश न था, जितना आज सुनाई पढता है,
धीमे-धीमे घड़ी के कांटे यूँ चलते हैं, जैसे न चाह के भी अपना फ़र्ज़ पूरा करते हैं


जैसे-जैसे रात का शबाब चढ़ता है, लौ का नाच चलता है,
और कुछ देर बाद वह भी फढ़ - फढ़ाने लगती है, 
जल-जल के उसकी साँसें भी उखड़ने लगती हैं


पर इस अन्जुमन में आज भी कोई नहीं आता है,
लौ का तमाशा धीरे-धीरे आज फिर ख़त्म हो जाता है,
आज फिर एक दीये की लौ का कत्ल हो जाता है...


- मनप्रीत