रोज़ सुबह मेरे घर का दरवाज़ा 'धम' से हिल जाता है,
न जाने ये सुबह-सुबह मुझको कौन जगाता है?
अक्सर दरवाज़ा खोलने से पहले वो गुम कहीं हो जाता है,
इस ही तरह सुबह-सुबह एक अख़बार मेरे घर भी आता है
चाय चुस्की लेते-लेते अखबार पड़ते हैं हम,
किसी सफे पर आती है हंसी, किसी पे आँखें हो जाती हैं नम,
कहीं हो रही मुसलाधार बारिश, कहीं 'पाक' रच रहा है साज़िश,
कहीं आसमान छूती महंगाई, तो कभी मनमोहन की कुर्सी डगमगाई.
रोज़ की आपा-धापी में एक शख्स फंस कर रह जाता है,
क्योंकि वह आम आदमी कहलाता है
आगे के पष्ठों पे जब हम नज़र दौड़ाते हैं,
तो common wealth की तैयारिओं के किस्से वहां पे नज़र आते हैं,
कहीं नयी बस्सें, कहीं मेट्रो की सवारी, इन खेलों की आड़ में सज गई दिल्ली हमारी
पर बेटी की शादी की तरह तैयारिया फिर भी रह जाएँगी,
मेहमानों से ही तो अंत में stadium की कुर्सियां फिट करवाई जाएंगी
नाक कटेगी या बचेगी ये तो वक्त ही बतलाएगा,
पर किसी न किसी तरह ये common wealth निकल ही जाएगा
मुंबई के चर्चे भी अक्सर रोज़ अखबारों में आते हैं...
चाचा, भतीजे (बाल ठाकरे, राज ठाकरे) की लड़ाई में देशवासी पिस कर रह जाते हैं
न जाने ये सुबह-सुबह मुझको कौन जगाता है?
अक्सर दरवाज़ा खोलने से पहले वो गुम कहीं हो जाता है,
इस ही तरह सुबह-सुबह एक अख़बार मेरे घर भी आता है
चाय चुस्की लेते-लेते अखबार पड़ते हैं हम,
किसी सफे पर आती है हंसी, किसी पे आँखें हो जाती हैं नम,
कहीं हो रही मुसलाधार बारिश, कहीं 'पाक' रच रहा है साज़िश,
कहीं आसमान छूती महंगाई, तो कभी मनमोहन की कुर्सी डगमगाई.
रोज़ की आपा-धापी में एक शख्स फंस कर रह जाता है,
क्योंकि वह आम आदमी कहलाता है
आगे के पष्ठों पे जब हम नज़र दौड़ाते हैं,
तो common wealth की तैयारिओं के किस्से वहां पे नज़र आते हैं,
कहीं नयी बस्सें, कहीं मेट्रो की सवारी, इन खेलों की आड़ में सज गई दिल्ली हमारी
पर बेटी की शादी की तरह तैयारिया फिर भी रह जाएँगी,
मेहमानों से ही तो अंत में stadium की कुर्सियां फिट करवाई जाएंगी
नाक कटेगी या बचेगी ये तो वक्त ही बतलाएगा,
पर किसी न किसी तरह ये common wealth निकल ही जाएगा
मुंबई के चर्चे भी अक्सर रोज़ अखबारों में आते हैं...
चाचा, भतीजे (बाल ठाकरे, राज ठाकरे) की लड़ाई में देशवासी पिस कर रह जाते हैं
कभी सितारों से माफ़ी मंगवाते, कभी उत्तर भारतियों को भागते
इनकी मानो तो मुंबई को एक ऐसा शहर बनाया जाए
जहाँ जाने के लिए VISA लगवाया जाए
जहाँ प्रेम की बोली छोड़ कर मराठी बोली जाए
आओ एक ऐसा शहर बनाए जहाँ केवल मराठी ही जी पाए
हर तरह की ख़बरों से ये हमें रुबरु करवाता है
किस नेता को पड़ा जूता... कहाँ, कैसे, किस मंत्री ने किस देश को लूटा,
कहाँ हुई रनों की बरसात, और कैसे स्वर्ण पदक जीत कर भी खाली रह गए हाथ
रोज़ नया इस जहान का चेहरा हमें दिखलाता है,
ऐसा ही अखबार एक मेरे घर भी आता है...
इनकी मानो तो मुंबई को एक ऐसा शहर बनाया जाए
जहाँ जाने के लिए VISA लगवाया जाए
जहाँ प्रेम की बोली छोड़ कर मराठी बोली जाए
आओ एक ऐसा शहर बनाए जहाँ केवल मराठी ही जी पाए
हर तरह की ख़बरों से ये हमें रुबरु करवाता है
किस नेता को पड़ा जूता... कहाँ, कैसे, किस मंत्री ने किस देश को लूटा,
कहाँ हुई रनों की बरसात, और कैसे स्वर्ण पदक जीत कर भी खाली रह गए हाथ
रोज़ नया इस जहान का चेहरा हमें दिखलाता है,
ऐसा ही अखबार एक मेरे घर भी आता है...
- मनप्रीत
3 टिप्पणियां:
बड़ा ही व्याहारिक और सटीक वर्णन...मनप्रीत जी इस सुन्दर रचना के लिए आप को बहुत बहुत बधाई बधाई..
Admin
This is most important Question for CCC
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