Meaning of Gunchaa

गुरुवार, जुलाई 28, 2011

मेरी नज़र से...(भाग-१)


जो बात आज मैं आप के सामने रखने जा रहा हूँ ये एक वास्तविक घटना  है  जिसे वैसे तो शब्दों में बयां करना मेरे लिए कुछ कठिन हैं क्योंकि वह एक एहसास हैं जिसे केवल महसूस किया जा सकता है परुन्तु फिर भी एक कोशिश कर रहा हूँ 

ये बात एक दोपहर की है, रोज़ की तरह ही मै मेट्रो से अपने दफ़्तर जा रहा था और रोज़ की तरह वो ही भीड़-भाड़, वो ही अफरा - तफरी का माहौल था, किसी को कहीं जाने की जल्दी तो किसी को कही जाने की । कोई अपने फोन पर बात कर रहा है तो कोई अपने वाज्य यंत्र पे गाने सुन रहा है और वहां दूर किसी कोने में एक प्रेमी जोड़ा एक दूसरे से अठखेलियां कर रहा है

पर दोस्तों इस सब अफरा - तफरी के माहौल के बीच जहाँ हर कोइ अपनी ही धुन में रंग है, दो शख्स मुझे कुछ अलग से दिखाई दिए जिन्होंने मेरा ध्यान अपनी और आकर्षित किया। अलबत्ता दोनों ही देखने में बहुत ही सामान्य नज़र आ रहे थे, दोनों ने सामान्य से ही वस्त्र पहने थे और दिखने में भी पड़े लिखे लग रहे थे। पर फिर भी उनमे और एक सामान्य व्यक्ति में बहुत अंतर था और वह अंतर ही उन्हें भीड़ से अलग करता था


हालांकि मैं उनसे कुछ ही फासले पर ही खड़ा था पर फिर भी उनकी गुफ्तगू नहीं सुन पा रहा था, पर वह दोनों स्वाभाव से बहुत ही जिंदादिल और खुशमिज़ाज मालूम पड़ते थे और उनके चेहरे से बहुत ही शीतलता छलकती थी एक पल तो दिल ने चाहा की उनकीं इस जिंदादिली का राज़ पूछूँ पर शायद हिम्मत नहीं जुटा पाया और केवल दो चार- कदम आगे बड़ा  के ही रुक गया। लेकिन अब भी में उनकी बातें नहीं सुन पा रह था, समझ नहीं पा रहा था की मेट्रो में शोर ज़्यादा था या मेरे कान ख़राब हो गए हैं। पर कुछ देर उन्हें गौर से देखने के बाद मुझे ज्ञान हुआ के वह दोनों बोल-सुन नहीं सकते, वह केवल इशारों की भाषा ही समझते हैं और ये ही बात उन्हें भीड़ से अलग करती थी 

उन दोनों को देख कर मुझे दुःख तो हुआ पर साथ ही साथ मैं बहुत हैरान भी हुआ ये देख कर की भला कैसे कोई बिना बोलने - सुनने की शमता के बिना इतना खुश रह सकता है? क्या हर पल उन्हें अपनी इस कमी का एहसास नहीं होता? क्या उन्हें रोज़ मररह की ज़िन्दगी में सामान्य लोगों के बीच हास्य का पात्र नहीं बनना पड़ता?

हम इंसानों की आदत होती है की अक्सर हम असामान्य चीज़ को एक-टुक  हो कर देखते हैं बिना ये सोचे समझे की हमारी ये निगाहें किसी को तलवार से गहरा ज़ख़्म  दे सकती है। बहराल इन सब सवालो का जवाब तो केवल वो ही व्यक्ति दे सकता है जो इन हालातों से गुज़रता है। 

हो सकता है मुझे केवल उनकी हंसी ही नज़र आई हो, उस हंसी के पीछे छुपा वह दर्द मेरी कमज़ोर नज़र न देख पाई हो "हम जो हँसते हैं तो उन्हें लगता है के हाल-ए-दिल अच्छा है, पर वह ये भूल जाते हैं की हँसते हुए भी आंसू टपका करते हैं " 

उन दोनों की वह मीठी सी मुस्कान मुझे आज भी याद है और मैं जब भी उसके बारे में सोचता हूँ अपने आप को सामान्य होने के बावजूद उनके सामने बहुत ही छोटा महसूस करता हूँ...

1 टिप्पणी:

बेनामी ने कहा…

thik kaha aapne sir ji