
तो कभी ख़ुशी के मारे ये बिना वजह भर आती हैं
ना जाने ये आँखें क्या कहना चाहती हैं...
जो देख ले कोई प्यारभरी नज़र से
शर्म से ये झुक जाती हैं
जागती आँखों से ही कितने, ख्वाब ये देख जाती हैं
ना जाने ये आँखें क्या कहना चाहती हैं...
कभी किसी की तलाश में बेचैन हो जाती हैं
बिछड़ जाए कोई अपना तो सारी रात जगाती हैं
हर पल सूरत उसी की फिर आईने में नज़र आती हैं
ना जाने ये आँखें क्या कहना चाहती हैं...
कभी ये सोचता हूँ दिल की मेरे व्यथा,
माँ कैसे जान जाती है?
जितना छुपाऊँ माँ तुझसे मैं
भेद मेरे ये सारे खोल जाती हैं
ना जाने ये कम्बखत आँखें क्या कहना चाहती हैं...
कौन जानता है किस मुसीबत में ये डाल दे हमें
ज़िंदगी की किन लहरों में डूबा दें हमें
हर पल हम जीते हैं,
हर पल हम मरते हैं
पर अब इन आँखों पे, हम भरोसा नहीं करते है...
- मनप्रीत
4 टिप्पणियां:
owesome bhaiya..:)
आपके ब्लॉग से आज परिचय होना बहुत अच्छा लगा । खूबसूरत कलेवर भी भा गया
yah to aankhen hai naa jane kya kya karti hai
Admin
This is most important Question for CCC
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