ऐ खुदा ये दुआ है तुझसे...
की ज़िन्दगी के सफ़र जब मैं थक जाऊं, कदम आगे बढाते-बढाते पीछे हट जाऊं,
जब कोई हमनफस मेरे साथ न हो, और सर पर किसी रहनुमां का हाथ न हो,
ऐ मौला मदद कर, मदद कर, मदद कर...
तेरे ही दर पर किस्मतें सवर जाती हैं, बिन मांगे सब अर्ज़ियां कबूल हो जाती हैं,
पर न जाने मैं तुझे क्यों हूँ भूल जाता, क्यों मुश्किल के वक़्त ही तू मुझे है याद आता,
क्यों गुनाह करने से पहले तेरा खौफ ज़हन में नहीं आता,
जब भी मेरा इमान डगमगाए, ऐ मौला मदद कर, मदद कर, मदद कर...
ज़िन्दगी भर तू मेरे जुर्मों को अपने पहलू में छुपता रहा...
हर मोड़ पे मैं तुझे भुलाता रहा, और तू साए की तरह मेरे साथ आता रहा,
तेरे ही चीज़ को तुझे ही सौंप कर मैं एहसान जताता रहा, पर फिर भी तू मुस्कुराता रहा
जब मेरे काम बिगड़े तुने मुझे सहारा दिया, मेरी डूबती हुई कश्ती को तुने ही किनारा दिया
लेकिन उसे भी मैं अपनी हिम्मत बताता रहा, और मन ही मन अपनी पीठ थप-थपाता रहा...
तेरी बनाई इस दुनिया में या खुदा... में जिंदा तो हूँ !!!
पर अपनी ही निगाहों आज बहुत शर्मिंदा हूँ...
बस इतनी सी अर्जी है मेरी कुबूल कर, की कभी फुर्सत से मेरे भी गुनाहों का हिसाब कर,
और अगर हो सके तो हर शख्स को मुआफ कर...
ऐ खुदा बस इतनी सी अर्जी है कुबूल कर, कुबूल कर, कुबूल कर...
की ज़िन्दगी के सफ़र जब मैं थक जाऊं, कदम आगे बढाते-बढाते पीछे हट जाऊं,
जब कोई हमनफस मेरे साथ न हो, और सर पर किसी रहनुमां का हाथ न हो,
ऐ मौला मदद कर, मदद कर, मदद कर...
तेरे ही दर पर किस्मतें सवर जाती हैं, बिन मांगे सब अर्ज़ियां कबूल हो जाती हैं,
पर न जाने मैं तुझे क्यों हूँ भूल जाता, क्यों मुश्किल के वक़्त ही तू मुझे है याद आता,
क्यों गुनाह करने से पहले तेरा खौफ ज़हन में नहीं आता,
जब भी मेरा इमान डगमगाए, ऐ मौला मदद कर, मदद कर, मदद कर...
ज़िन्दगी भर तू मेरे जुर्मों को अपने पहलू में छुपता रहा...
हर मोड़ पे मैं तुझे भुलाता रहा, और तू साए की तरह मेरे साथ आता रहा,
तेरे ही चीज़ को तुझे ही सौंप कर मैं एहसान जताता रहा, पर फिर भी तू मुस्कुराता रहा
जब मेरे काम बिगड़े तुने मुझे सहारा दिया, मेरी डूबती हुई कश्ती को तुने ही किनारा दिया
लेकिन उसे भी मैं अपनी हिम्मत बताता रहा, और मन ही मन अपनी पीठ थप-थपाता रहा...
तेरी बनाई इस दुनिया में या खुदा... में जिंदा तो हूँ !!!
पर अपनी ही निगाहों आज बहुत शर्मिंदा हूँ...
बस इतनी सी अर्जी है मेरी कुबूल कर, की कभी फुर्सत से मेरे भी गुनाहों का हिसाब कर,
और अगर हो सके तो हर शख्स को मुआफ कर...
ऐ खुदा बस इतनी सी अर्जी है कुबूल कर, कुबूल कर, कुबूल कर...
- मनप्रीत
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